आर्यकुमार प्रशान्त पाण्डेय
हिंद स्वराष्ट्र। अंबिकापुर परिवहन विभाग ने प्रदेश में ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने में भारी इजाफा कर दिया है। यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई हैं। इसके अनुसार अब हेलमेट न पहनने पर 500 रुपए जुर्माना लगाया जाएगा लेकिन शायद जिले के एसपी और एएसपी को ट्रैफिक नियमों की कोई जानकारी नहीं हैं या वे खुद को नियम और कानूनों से परे समझते हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा हैं क्योंकि धनतेरस के दिन शहर में होने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सड़कों का जायजा लेने एसपी और एएसपी बुलेट पर ही निकल गए जबकि ना तो उन्होंने हेलमेट लगाया हुआ था ना ही फेस मास्क ही लगाया था। जिसकी वजह से लोगो द्वारा इन्हे मजाक का पात्र बनाया गया और खासी बेइज्जती का सामना करना पड़ा। लोगो ने कहा की जिले के कप्तान का ऐसा लापरवाही भरा रवैया आम नागरिकों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हैं।
कानून से बड़ा होता है एसपी एसपी का पद
अंबिकापुर एसपी और एडिशनल एसपी की कृत्यों को देखकर प्रतीत होता है कि यह दोनों अपने आप को कानून से भी बड़े मांनते हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो जिले को लॉ एंड ऑर्डर की दुहाई देने वाले अमित तुकाराम कामले और विवेक शुक्ला खुद कानून के नियमों का पालन करते। सरगुजा एसपी एवं एडिशनल एसपी किसी प्रकार के आइकन नहीं है लेकिन पुलिस के आला अधिकारी होने के नाते जिले भर के पुलिस वाले इनके आदेशों का पालन जरूर करते हैं। यदि एसपी और एडिशनल एसपी कानून तोड़ते चलें तो जिले में पदस्थ एक आम पुलिसवाला कानून की मान मर्यादा का पालन कैसे करेगा। उसके दिमाग में भी अपने बड़े अधिकारियों के कु कृतियों की छवि जरूर बनेगी जिसका इन दोनों को आभास तक नहीं है।
आम नागरिक को कानून के दायरे में रहने की बात कहने वाले खुद नहीं जानते सही कानून…?
क्या पुलिस के इन बड़े अधिकारियों को कानून की सही जानकारी नहीं है। इन अधिकारियों के इस कृत्य ने जिले वासियों को कानून तोड़ने की प्रेरणा दी है क्योंकि जिले का हर व्यक्ति यह विचार करने पर विवश होगा कि पुलिस के कप्तान और उपकप्तान को कानून की सही जानकारी नहीं है या वह सही तरीके से पालन नहीं करते हैं तो जिले के हर व्यक्ति को कानून का पालन करने की जरूरत नहीं है।
कानून सबके लिए समान है या नहीं।
आम आदमी द्वारा एक छोटी सी गलती किए जाने पर उससे फाइन लिया जाता है या फिर पुलिस के कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों द्वारा जेब खर्च रूपी रिश्वत लेकर छोड़ दिया जाता है तो फिर शहर में दिनदहाड़े बिना मास्क एवं बिना हेलमेट के घूम रहे एसपी और एडिशनल एसपी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई क्या यह दोनों कानून से बड़े हैं इनके लिए कानून में भी छूट है।
इन अधिकारियों के इस कृत्य ने पुलिस विभाग का पोल खोल कर रख दिया है की सारी दुनिया के लिए कानून एक तरफ और पुलिस वालों के लिए कानून एक तरफ। कई ऐसे मामले हैं जिसमें पुलिस विभाग अपने कर्मचारी से लेकर अधिकारी को बचाने में जी-जान की कोशिशों में लगा रहता है यह कोई पहला मामला नहीं है अभी तो इससे पहले भी ऐसे मामले आ चुके हैं जिस पर पुलिस वालों को बचाने के लिए पुलिस विभाग की सारी कायनात एक हो गई थी।
मानवता के आधार पर खुद जाकर पटाना चाहिए इन दोनों को अपना फाइन
मानवता के आधार इन पुलिस वालों को खुद जाकर अपना अपना चालान जमा करना चाहिए,लेकिन जो कानून तोड़ते समय नही सोचे वो फाइन भरने क्या जायेंगे। अब जिले में कभी भी फाइन भरने किसी आम व्यक्ति को बोला जाएगा तो वह यह जरूर कहेगा की पहले एसपी और एडिशनल एसपी फाइन भरने फिर हम भरेंगे।
एएसपी और एसपी के कृत्य के लिए यह कहना बिलकुल भी गलत नही होगा की जो दूसरों पे उंगली उठाते हैं उनको कभी अपने गलतियों को भी झांक के देखना चाहिए,तब सही निर्णय निकल पाएगा।