नई दिल्ली
आज जहां एक और हमारे देश में करुणा संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया पूरे जोरों शोरों से चलाई जा रही है इस वैक्सीनेशन प्रक्रिया में बड़े बुजुर्ग सभी अपना योगदान दे रहे हैं लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि इस वैक्सीन की कार्य अवधि कितने दिनों या सालों तक रहेगी। आखिरकार कब तक इस वैक्सीन का असर मनुष्य शरीर पर बना रहेगा
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कोरोना महामारी से बचने के लिए वैक्सीन सबसे बेहतर विकल्प है. ये आपके इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाता है, जिससे बीमार होने का खतरा कम हो जाता है. हालांकि इसका असर हमेशा के लिए नहीं बल्कि कुछ निश्चित अवधि तक होता है। अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने 4000 स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स पर वैक्सीनेशन के बाद स्टडी की है. इसमें पाया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन 6 महीने तक लोगों को वायरस से बचा सकती है. जबकि अन्य कुछ वैक्सीन का असर 6 महीने से सालभर तक माना जा रहा है।
इसके अलावा मॉडर्ना वैक्सीन को लेकर भी यह कहा जा रहा है कि दोनों डोज लेने के 6 महीने बाद तक के लिए कोरोना का डर नहीं रहता. मॉडर्ना वैक्सीन से तैयार होने वालीं एंटी-बॉडीज 6 महीने तक शरीर में रहती हैं. हालांकि किसी शख्स का बीमार होना एंटी-बॉडीज के अलावा उसके इम्यून सिस्टम पर भी निर्भर करता है. अगर इम्यूनिटी जितनी स्ट्रांग होगी कोरोना का रिस्क उतना ही कम होगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैक्सीन एक्सपर्ट ने कहा कि फिलहाल जो वैक्सीन उपलब्ध हैं, उनका असर कम से कम एक साल रह सकता है. लेकिन आगे चलकर कोरोना के नए वैरिएंट्स चिंता की वजह बन सकते हैं. क्योंकि अगर वायरस के म्यूटेंट बदलते हैं तो फिर वैक्सीन को भी अपडेट किए जाने की जरूरत पड़ेगी।
जब हमारा इम्यून सिस्टम जरूरत से ज्यादा स्ट्रांग हो जाता है तो रोगों से लड़ने के बजाय हमारे शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगता है. इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं. इसमें इम्यून सेल फेफड़ों के पास जमा हो जाते हैं और उसपर हमला करने लगते हैं. इससे खून की नसें फटना और खून के थक्के बनने लगते हैं. इस स्थिति को जांच और इलाज के बाद नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन कोविड-19 के मरीजों के केस में कुछ भी कहना मुश्किल है।