आदिवासियों के साथ खेला जा रहा है धर्म परिवर्तन का गंदा खेल, प्राचीन जनधारा से हटाने की जा रही है पुरजोर कोशिश…

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जशपुर:- आदिवासियों को उनकी संस्कृति से अलग करने के लिए बहुत बढ़ा षड्यंत्र मिशनरियों द्वारा किया जा रहा है। मासूम आदिवासियों को डरा धमका कर बहला-फुसलाकर उन्हे अपनी संस्कृति और धर्म को त्यागने के लिए मजबूर किया जा रहा हैं। हाल ही में एक मामला सामने आया है जिसमें सरपंच और तीन शासकीय शिक्षकों ने आदिवासी ग्रामीणों से हिंदू देवता श्री राम के बारे में विवादित टिप्पणि की और भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर भी सवाल उठाए।
आदिवासियों को जो कि हिंदू है उन्हें हिंदू मानने से इनकार किया और उन पर हिंदू धर्म त्यागने के लिए दबाव डाला गया। जशपुर जिले का ऐसा पहला मामला नहीं है।पहले भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं।
जशपुर जिले के गोड़ाम्बा पंचायत में ग्रामीणों ने अपने पंचायत में रामकथा सुनने के लिए दिन तारीख तय करने के लिए सभा बुलाई तो ग्राम पंचायत के सरपंच ने बीच मीटिंग में ही हिंदू धर्म और भगवान श्री राम के प्रति अभद्र टिप्पणी कर ग्रामीणों से ही भगवान राम कौन था राम के पिता कौन था कहते हुए अभद्र टिप्पणी करने लगा और तीन शासकीय शिक्षक जो कि सविधान की किताब साथ लेकर आये थे वे भी सरपंच का सर्मंथन करते हुए कहने लगे कि आदिवासी हिन्दू नहीं है यहां के आदिवासी अपने आप को हिन्दू नहीं मान सकते और न ही मानेंगे।

सरपंच और शिक्षकों ने बच्चो को हिंदू धर्म के प्रति भड़काया
सरपंच जयशंकर और साथ में आये दुलदुला ब्लॉक के तीन शिक्षक भी बच्चों को सही चीज सीखाने के बजाय रामकथा का विरोध कराने में लग गए, जिसमें शिक्षक नरेंद्र, गणेश साय, परमानन्द साय ने ग्रामीणों को हिंदू धर्म को लेकर भ्रमित, अपने आराध्य के प्रति अपशब्द सुनकर ग्रामीण भी भड़क गए और शिक्षकों की पिटाई कर दी जिसमें एक शिक्षक परमानंद साय मौके से भाग निकला।
जब सरपंच से पूछा गया कि आपको कब पता चला कि आदिवासी ग्रामीण हिन्दू नहीं है तो उनका कहना था कि अभी 2 माह पहले पता चला कि आदिवासी हिन्दू नहीं है बाकी खोज चल रहा है। हालाकि जशपुर जिले में अभी से नहीं बल्कि कई वर्षों से नाटक के माध्यम से रामकथा किया जाता है और जशपुर जिले के आदिवासी रामकथा का नाट्य रूपांतरण बहुत शौक से देखते आ रहे हैं लेकिन जिले की भोली भाली जनता को धर्म के विपरीत भ्रमित करने के लिए एक नया संगठन पैर पसारने लगा है जिसमें कुछ ग्रामीणों के अलावा शासकीय तकबा भी शामिल हो चुका है। बहरहाल अब देखने वाली बात है कि जशपुर जिले में ये लोग धार्मिक उन्माद फैलाने वाले गैंग जशपुर जिले की भोली भाली जनता को बरगलाने में कहां तक सफल होते हैं, और हिंदुओं को टुकड़ों में बाटने के लिए कैसे और कितने षड्यंत करते हैं।
गौरतलब है कि भारत देश में ईसाई मिशनरियों के आने से पूर्व भी आदिवासी थे जो विधिवत हिंदू धर्म की एवं हिंदू देवताओं की उपासना करते थे परंतु ईसाई मिशनरियों द्वारा अपने धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए भोले-भाले आदिवासियो के साथ धर्म परिवर्तन का गंदा खेल खेला जा रहा है, सोचने वाली बात यह है कि ईसाई मिशनरी भारत में करीब 200 से ढाई सौ वर्ष पूर्व आए थे और हजारों साल पहले से भारत में आदिवासियों का इतिहास है तब फिर कूटनीति वाले मिशनरी आदिवासियों को हिंदू क्यों नहीं मानते हैं? इसका एक ही कारण है अपने मिशनरी धर्म में भोले-भाले आदिवासियों को धर्म परिवर्तन कराना।

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