अपराधिक तत्वों पर नहीं रहा पुलिस का खौफ जिले में पुलिस कस्टडी में अब तक चार की हो चुकी है मौत! मृतकों के शरीर पर मिले चोट निशान है सबूत, जांच ऐसे अफसरों को दी जिन पर केस चल रहा

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सूरजपुर कौशलेंद्र यादव । जिले में पुलिस प्रताड़ना का आलम यह है कि अपराधिक तत्वों के लोगों पर पुलिस का कोई खौफ नहीं है आम आदमी से मित्रवत व्यवहार बनाना तो दूर पुलिस उनसे सीधे मुंह बात नहीं करती, जिले में पुलिस का रवैया कुछ ऐसा है जो किसी से छिपा नहीं है अपराधी बेखौफ हैं तो आम आदमी पुलिस से भय खाता है। जिले में पुलिस बेलगाम है जिसका नतीजा यह है कि शिकायत लेकर जाने वालों को पुलिस के कोप भाजन का शिकार होना पड़ता है।दूसरी ओर अब तक पुलिस कस्टडी में 4 मौतें हो चुकी हैं और एक भी मामले की जांच पूरी नहीं हुई जिससे मृतकों के परिजनों को सबूत लेकर न्याय का इंतजार करना पड़ रहा है हाल ही में विद्युत विभाग के जूनियर इंजीनियर की मौत ने पुलिसिया प्रताड़ना की पोल खोल के रख दी है। पुलिस कस्टडी में मौत के लगातार मामले सामने आ रहे हैं। पिछले सात सालों के दौरान चार मामलों में पुलिस कस्टडी में मौत होने के आरोप विभाग पर लगे हैं। सभी घटनाओं में पीड़ितों के शरीर पर मौजूद चोट के निशान पुलिसिया जुल्म की कहानी बयां कर रहे हैं। इसके बाद भी आज तक एक भी मामले की न तो जांच पूरी हो सकी है और न ही आरोपियों को सजा मिली है।

केस एक

7 साल पहले थाने में पिटाई से इंजीनियर की हुई थी मौत

प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के गृहग्राम चेन्द्रा के पकनी निवासी नरनारायण सिंह रेलवे मे इंजीनियर के पद पर गुजरात में तैनात थे। वह छुट्टी लेकर अपनी बेटी के अन्नप्राशन के लिए गांव पहुंचे थे। 11 नवंबर 2013 को चेकिंग के दौरान पुलिस ने उन्हें भी रोका तो वह नहीं रुके। इस पर पुलिस के दो आरक्षकों ने पीछा कर उनको पकड़ लिया और थाने ले जाकर जमकर पीटा। इलाज के दौरान उनकी रापुर में 21 नवंबर को उनकी मौत हो गई। विरोध के बाद तत्कालीन एसपी एसएस सोरी ने दोनों आरक्षकों को निलंबित कर तत्कालीन कलेक्टर डाॅ. एस. भारती दासन ने प्रतापपुर एसडीएम के नेतृत्व में की गई जांच में पुलिस थाने के दोनों आरक्षकों को दोषी पाया गया। इसके बाद दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए फिर से मजिस्ट्रियल जांच शुरू की गई। जांच कमेटी में अपर कलेक्टर एमएल धुतलहरे को शामिल किया गया, जिन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को निर्दोष करार दिया। परिवार ने न्यायालय की शरण ली है।

केस दो सुसाइड नोट में लिखी पुलिस प्रताड़ना की कहानी, नहीं हुई कार्रवाई

24 मार्च 2018 को पुलिस पर प्रताड़ना का आरोप लगाकर पटवारी रामनारायण दुबे ने जहर खाकर आत्महत्या कर दी। मृतक के सुसाइड नोट में झिलमिली थाने में तैनात एक महिला एएसआई पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। मृतक पटवारी से बरामद सुसाइड नोट में उन्होंने महिला एएसआई पर 6 लाख रुपए मांगने का आरोप लगाया। इसमें अपनी मौत का जिम्मेदार महिला एएसआई, तत्कालीन पटवारी व सूरजपुर के एक व्यवसायी को बताया। इस मामले में भी किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

केस तीन
लॉकअप के अंदर फंदे पर लटका मिला था शव, कोई कार्रवाई नहीं

इसी तरह 27 जून 2019 को चंदौरा थाने के लॉकअप में कृष्णा सारथी का शव फांसी पर लटका मिला था। युवक ने कंबल काटकर फांसी का फंदा बनाया था। इसके बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने पुलिसकर्मियों की लापरवाही मानते हुए थाने के पूरे 12 स्टाफ में से थाना प्रभारी सहित 10 को तत्काल निलंबित कर दिया था। उसके शरीर पर चोट के निशान थे। इस मामले में भी मजिस्ट्रियल जांच शुरू की गई, लेकिन आरोपी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई नहीं हुई। निलंबित स्टाफ भी बहाल होकर थानों में ड्यूटी कर रहा है।

केस चार
हत्या के आरोपी जेई की अस्पताल में मौत, पुलिस पर मारपीट का आरोप

हाल ही में सूरजपुर जिले के लटोरी चौकी अंतर्गत करवां विद्युत सब स्टेशन में तैनात जेई की संदेहास्पद मौत ने पुलिसिया बर्बरता की चर्चा गर्म कर दी है। इस मामले में पुलिस पर मारपीट का आरोप है। परिजनों ने पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी नहीं कराए जाने समेत शरीर पर मौजूद चोटों के संबंध में पुलिस पर आरोप लगाते हुए शव रोड पर रखकर प्रदर्शन किया गया था। इस मामले में पुलिस अधीक्षक ने न्यायिक जांच की सिफारिश की है।

केस पांच
पंकज बेक की मौत के मामले में परिजन को अब नहीं मिला न्याय

पुलिस की हिरासत में मौत का सबसे चर्चित मामला जिले के अधिना निवासी पंकज बेक का रहा। पंकज को चोरी के आरोप में 21 जुलाई 2019 को सरगुजा जिले के कोतवाली थाने में बुलाया गया था। इसके दूसरे दिन उसका शव अंबिकापुर के एक निजी अस्पताल की खिड़की से लटका हुआ मिला था। मृतक की पत्नी रानु बेग ने इस पूरे मामले की शिकायत प्रदेश सहित केन्द्र की सभी संवैधानिक संस्थाओं से की थी। इतने लंबे अंतराल के बाद भी मृतक के परिजनों को न्याय नहीं मिल सका है।

थर्ड डिग्री देकर शार्टकट से खुलासा करती है पुलिस

अपराध अन्वेषण के जानकार व शोधार्थी अकील अहमद ने बताया कि पुलिस किसी भी अपराध के खुलासे में शॉर्टकट रास्ता अपनाती है। इसमें सबसे पहला होता है थर्ड डिग्री टॉर्चर। जबकि साइंटफिक मेथड का उपयोग किया जाना चाहिए। पुलिस चूंकि उसी काम को हर रोज अंजाम देती है तो अपनी बर्बरता को छिपाने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य बना लेती है और एक नई कहानी गढ़ देती है। वहीं पुलिस और प्रशासन एक ही सिक्के के दो पहलू होने के कारण मजिस्ट्रियल जांच के बाद भी दोषी ठहराया जाए, ऐसी बहुत कम ही संभावना होती है। न्यायिक जांच काफी हद तक मददगार हो सकती है, लेकिन उसमें भी पुलिस ही पूरी विवेचना करती है तो सजा दिला पाना संभव नहीं हो पाता है। यदि किसी जांच में अवैध कबूलनामे के लिए, अवैध गिरफ्तारी के लिए, हत्या, पद का दुरुपयोग, प्रताणित करने का दोषी मानते हुए पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की भी सजा हो सकती है।

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