गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान में है 11 अदभुद स्थान… छत्तीसगढ़ पर्यटन को बढ़ावा देने देंगे महत्वपूर्ण योगदान…

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हिंद स्वराष्ट्र विशेष रिपोर्ट : विकासखंड सोनहत मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में स्थित नीलकंठ नामक स्थान जो चारों ओर से पहाडि़यों की बच बसा है यहां की ऊंची ऊंची पहाडि़यां अपने आप में देखने लायक है और उसी पहाड़ की चोटी पर शिवलिंग स्थापित है जिसे नील कंठ के नाम से जाना जाता है। यहां सावन माह में दूर – दूर से श्रद्वालु भगवान शिव की पूजा करने पहुचते है। दुर्गम वन क्षेत्र में स्थित इस प्राकृतिक शिव मुर्ति को लेकर कई तरह की किवदंतियां जुडी हुई है। यही वजह है कि अत्यंत दुर्गम एवं पहुच विहीन होने के बावजूद यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढती जा रही है। इस जगह पर पहुंचना आसान नहीं है क्योकी उक्त स्थान पर पहुचने के लिए भीषण पहाड़ पर चढना पड़ता है जिसके लिए उपयुक्त मार्ग नही है कोरिया रियासत के समय इस जगह खोज की गई थी। यहां एक गुफा में प्राकृतिक रूप से शिविलिंग स्थित हैं। घने जंगल में स्थित गुफा के अंदर घुटनों के बल जाना पड़ता हैं। यहां छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि यहां आने से मनोकमना पूरी होती है।
दिवार के जैसा पहाड़ व झरने का संगम
नीलकंठ में एक पतले पत्थर की अनोखी पहाड़ी भी है जो देखने में अदभुद एवं आश्चर्यजनक भी है जिसे लोगों को देखने के बाद समझ नही आता की यह दिवार किस आधार पर इतने लंबे अरसों से टिकी हुई है वहीं स्थानीय लोगों के मुताबिक इस दिवार में कभी कभार कंपन भी होता है बावजूद इसके यह दिवार जैसा पहाड़ टिका हुआ है साथ ही लोगों का यह भी कहना है की अब इस पहाड़ की उंचाई काफी कम हो गई है इसके अतिरिक्त इसी पहाड़ के बगल से लगा हुआ झरना जो अत्यंत उंचाई से जमीन पर गिरते हुए लोगों का मन मोह लेता है।
सूखी लकड़ी के उपर से निकलता है पानी
इस स्थान पर प्रकृति का एक अनोखा दृश्य यह भी देखने को मिलता है की यहां पर एक सूखी लकड़ी से पानी की धारा निरंतर निकलती रहती है जिसके जल स्रोत का आज तक पता नही चल पाया है आस पास के ग्राम जनों का मानना है की यह पानी इस सूखी लकड़ी से प्राचीन काल से निकलता ही आ रहा है जो आज तक बंद नही हुआ है।
राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में 11 अदभुद स्थान
कोरिया जिले के अलग – अलग इलाकों में प्राकृतिक रूप से कई धार्मिक स्थल स्थापित हैं।

सीतामढी गुफा : राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों के बीच दुर्गम रास्तों से होकर इस धाम तक पहुचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए काफी दूर तक घने जंगल में पैदल चलना पड़ता है । श्रद्धालुओं का मनना है कि वे पिछले कई सालों से यहां आ रहे है। यहां आने से सभी मनोकमना पूरी होती है। सीतामढी धाम के आसपास कोई गांव नहीं है। ऐसे बियावन जंगल में पगडंडी रास्तों से होकर कठिनाई से पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं को यहां सुखद अनुभूति होति है। ऐसा कहा जाता है की वनवास के दौरान प्रभु श्री राम ने कुछ देर इस स्थान पर माता सीता के साथ विश्राम किया था उक्त स्थान पर कई पद चिन्ह भी मौजूद है ।

आमापानी : दर्शनीय स्थल भी बेहद अदभुद है यहां पर गोपद नदी का उदगम आम के जड़ से हुआ है इसी लिए इसे आमा पानी कहा जाता है।
खेकडा माडा हिलटाप: इस हिलटाप से सघन वन, घाटी एवं पहाड का आनंद लिया जा सकता है।
गांगीरानी माता की गुफा: यह रॉक कट गुफा है जहां गांगीरानी माता विराजमान है। गुफा के पास जल स्रोत है जिसमें सालों भर पानी रहता है। यहां रामनवमी के अवसर पर मेला लगता है।
आनंदपुर: आनंदपुर अपने नाम के अनुरूप सघन नदियों से घिरा रमणीक स्थल है। यह चारों ओर से ऊंचे-ऊंचे जल प्रपात एवं झरनों से घिरा मनोहारी स्थल है।
बीजाधुर: यह कल कल कर बहता हुआ सदाबहारी पहाड़ी नदी है। यहॉं बैठकर सघन वन, एंव पक्षियों की कलरव एवं उनकी जलकीडा का आनंद लिया जा सकता है।
सिद्धबाबा की गुफा: सर्प देवता स्वरूप में सिद्धबाबा का निवास स्थल है यहां रामनवमी के दिन मेला लगता है। यहॉं लोग मन्नत भी मांगते हैं।

च्यूल जल प्रपात: यह च्यूल से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर सघन वन से घिरा लगभग 60 फीट की ऊंचाई से गिरता सदाबहार जल प्रपात है। नीचे जल कुंड है जिसमें जलक्रिडा का आनंद लिया जा सकता है।

खोहरा पाट: यह च्यूल से लगभग 20 कि.मी. है यह स्थान पाइंट हैलटाप पर है जहां खोहरा ग्राम बसा है। यहां से सघन वन, एवं घाटी का विहगंम दृश्य देखते ही बनता है।
छतोडा की गुफा : यह एक रॉक कट छोटी गुफा है जिसमें ग्राम देवता की मूर्तियां हैं।

नेउर नदी: खोहरा पाट से नीचे उतरने पर सदाबहार कल-कल बहती नेउर नदी का चैडा पाट का नजारा देखते बनता है नदी का जल गहरा है रोमांचक स्थल है होने के साथ साथ छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश को जोड़ती भी है

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