केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को एक के बाद एक चार ट्वीट कर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर जमकर हमला बोला। रिजिजू ने नेहरू की 5 बड़ी गलतियां गिनाईं और कहा- जम्मू-कश्मीर के विलय को लेकर पंडित नेहरू की गलतियों का खामियाजा पिछले 70 साल से देश भुगत रहा है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाकर इसे सुधारा। इधर, कांग्रेस ने रिजिजू के बयान पर उनका नाम लिए बिना पलटवार किया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा- केंद्र सरकार और भाजपा के नेता देश को नकली इतिहास बेच रहे हैं। कश्मीरी पंडितों का लगातार पलायन हो रहा है। पिछले 10 महीने में 30 कश्मीरी पंडित मारे जा चुके हैं। शोपियां जहां 32 साल से कश्मीरी पंडितों के परिवार रुके रहे, उन्हें भी वहां से निकलना पड़ा। सरकार अगर इसे सामान्य स्थिति कहती है तो उन्हें आंखें खोल लेनी चाहिए।
आज 27 अक्टूबर 1947, इस दिन के मायने समझते हैं…
दरअसल, आज 27 अक्टूबर 1947 है। यानी इतिहास का वो दिन है, जब पाकिस्तानी सेना और लश्कर आक्रमणकारियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर उसे हथियाने की नापाक कोशिश की थी। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने 5 हजार कबायलियों को कश्मीर में घुसपैठ करके कब्जा करने के लिए भेजा था, तब कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी थी।इसके बाद हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। तब सेना की सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन से एक पैदल सेना का दस्ता विमान से श्रीनगर भेजा गया। 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय पैदल सैनिकों ने कश्मीर को कबायलियों के चंगुल से मुक्त करवा दिया।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ भारतीय सेना का यह पहला फौजी अभियान था, जिसे इन्फेंट्री ने अंजाम दिया। इस अभियान में शानदार कामयाबी की याद में हर साल 27 अक्टूबर को देश में ‘इन्फेंट्री डे’ यानी पैदल सेना दिवस भी मनाया जाता है।
अब जानिए नेहरू की वो 5 भूल जिनका जिक्र किरेन रिजिजू ने किया…
1. महाराजा हरि सिंह जुलाई 1947 में ही भारत में विलय चाहते थे, नेहरू ने नकार दिया
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा- यह ऐतिहासिक झूठ है कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के सवाल को टाल दिया था। कश्मीर मुद्दे में नेहरू की संदिग्ध भूमिका को छिपाने के लिए ये झूठ लंबे समय से चला आ रहा है।
शेख अब्दुल्ला के साथ समझौते के बाद 24 जुलाई, 1952 को नेहरू ने लोकसभा में कहा था कि आजादी से एक महीने पहले महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में शामिल होने के लिए संपर्क किया था, लेकिन नेहरू ने महाराजा हरि सिंह के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
1952 के भाषण में उन्होंने आगे कहा- भले ही महाराजा और उनकी सरकार भारत में शामिल होना चाहती थी, हम कुछ और चाहते हैं, यानी लोकप्रिय अनुमोदन। यानी तब के भारत विरोधी तबके की भी सहमति।
जबकि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार रियासतों के लोगों की लोकप्रिय स्वीकृति लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी। केवल यही मायने रखता था कि शासक की भारतीय संघ में शामिल होने की इच्छा थी। अन्य रियासतों ने भी ऐसा ही किया था।
नेहरू की भूल सिर्फ जुलाई 1947 के बाद ही नहीं थमी। विभाजन के बाद हुए रक्तपात और हिंसा के बावजूद, नेहरू कश्मीर के विलय से पहले अपने व्यक्तिगत एजेंडे को पूरा करने के लिए अड़े रहे।
2. नेहरू ने विलय को मंजूरी तो दी, लेकिन शर्तों के साथ
नेहरू की गलतियों की दूसरी किस्त का जिक्र करते हुए रिजिजू ने कहा- महाराजा हरि सिंह ने अन्य सभी रियासतों की तरह ही विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी रियासतों को स्पष्ट रूप से भारत में एकीकृत कर दिया गया था। 26 अक्टूबर को नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री एम सी महाजन को एक और पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा- भारत सरकार इस घोषणा को अस्थायी रूप से स्वीकार करेगी। यानी नेहरू ने विलय तो मंजूर किया, लेकिन शर्तों के साथ।
नेहरू ने कश्मीर में जो शून्य पैदा किया था, उसने पाकिस्तान को कश्मीर में दखल देने की अनुमति दी और आखिरकार कबायलियों की आड़ में उसकी सेना ने 20 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण किया। तब भी नेहरू अडिग थे। कश्मीर में पाकिस्तानी सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी। महाराजा हरि सिंह ने फिर नेहरू से भारत में शामिल होने का अनुरोध किया। लेकिन नेहरू अभी भी अपने निजी एजेंडे को पूरा करने के लिए बातचीत कर रहे थे।
21 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी आक्रमण शुरू होने के एक दिन बाद, नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री एम सी महाजन को एक पत्र के माध्यम से सलाह दी कि इस स्तर पर भारतीय संघ के साथ विलय की कोई भी घोषणा करना शायद ठीक नहीं होगा।
मेरा सुझाव है कि आप एक तात्कालिक सरकार गठन करने का निर्देश दें। शेख अब्दुल्ला जो कश्मीर में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं। उनसे ऐसी सरकार बनाने के लिए कहा जा सकता है। घोषित नीति के अधीन कि ऐसे मामलों को लोगों की इच्छा के अनुसार अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।
27 अक्टूबर, 1947 को नेहरू को कश्मीर के विलय के प्रश्न को स्थायी रूप से बंद करने का एक और मौका दिया गया। लेकिन नेहरू की भूलों ने एक ऐसा रास्ता खोल दिया जिसने सात दशकों के संदेह, अलगाववादी मानसिकता और रक्तपात को जन्म दिया।
3. आर्टिकल 35 के तहत UNO में मामला लेकर गए, 51 का इस्तेमाल नहीं किया
रिजिजू ने कश्मीर पर तीसरी नेहरूवादी भूल का जिक्र करते हुए बताया- देश इस गलती का खामियाजा आज भी भुगत रहा है। दरअसल, नेहरू 1 जनवरी 1948 को आर्टिकल 35 के तहत संयुक्त राष्ट्र गए। आर्टिकल 35 विवादित जमीन के लिए था, जबकि नेहरू को पाकिस्तान द्वारा अवैध कब्जे को लेकर आर्टिकल 51 के तहत संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखनी थी।
महाराजा हरि सिंह ने विलय के केवल एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए- वह भारत के साथ। फिर भी, यह नेहरू ही थे जिन्होंने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच के विवाद के रूप में स्वीकार करके पाकिस्तान को कश्मीर में हस्तक्षेप का एक ठिकाना दे दिया। तब से, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों ने भारत को परेशान करना जारी रखा है।
4. UN के दखल के बाद कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग खुलेआम उठने लगी
कश्मीर पर नेहरू की चौथी बड़ी गलती इस मिथक को पनपने देने के लिए थी कि कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य जनमत संग्रह को भारत द्वारा रोका जा रहा है। 13 अगस्त, 1948 को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) के प्रस्ताव में तीन शर्तें थीं। पहला- युद्धविराम। दूसरा- पाकिस्तान द्वारा सैनिकों की वापसी। तीसरा- जनमत संग्रह।
पाकिस्तान युद्धविराम तो करता रहा, लेकिन उसने सैनिकों की वापसी से इनकार कर दिया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र हमेशा से शांति की दुहाई देकर कश्मीर मामले में अपनी टांग अड़ाता रहा है।
5. आर्टिकल 370 लगाया, इससे अलगाववाद की भावना जन्मी
कश्मीर पर नेहरू की पांचवी बड़ी गलती आर्टिकल 370 बनाना और उसे लागू करना थी। खास बात यह है कि अंतरिम संविधान में इसकी जगह आर्टिकल 306A रखा गया था। वास्तव में 370 जैसा स्पेशल आर्टिकल और इसके तहत विलय की शर्त किसी और स्टेट के मामले में नहीं रखी गई। कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने की बात नेहरू के अलावा किसी ओर के जेहन में आई ही नहीं थी। इसके विरोध की एक मिसाल भी हमारे सामने है।
मौलाना हसरत मोहानी जो यूनाइटेड प्रॉविन्स के रिप्रेजेंटेटिव थे, उन्होंने संविधान सभा में इस पर नेहरू से सवाल भी पूछा था। 17 अक्टूबर 1949 को मोहानी ने कश्मीर का खासतौर पर जिक्र करते हुए नेहरू से पूछा था- आप इस राज्य और राजा के बारे में भेदभाव क्यों कर रहे हैं। खास बात यह है कि न तो नेहरू और न ही एन गोपालास्वामी अयंगर ने इस बारे में जवाब दिया कि क्यों आर्टिकल 370 जैसा भेदभाव करने वाला प्रावधान संविधान में रखा जा रहा है।
यह आर्टिकल ही बाद में अलगाववादियों का हथियार बना और देश को आज भी कष्ट दे रहा है। नेहरू की गलतियों का खामियाजा देश ने 70 साल तक भुगता। सच्चाई ये है कि नेहरू ने परिवार, दोस्तों और पर्सनल एजेंडे को भारत के हित से ऊपर रखा, उसे ज्यादा तवज्जो दी। दुनिया ने भी भारत को दबाव में रखने की कोशिश की। इसका ही फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कश्मीर की कब्जाई जमीन चीन को सौंप दी। फिर 1980 के दशक में आतंकवाद शुरू हो गया।
कश्मीरी हिंदुओं को अपनी जन्मभूमि से बेदखल होना पड़ा। आतंकवाद की वजह से देश के हजारों नागरिकों ने जान गंवाई। हमारे सैकड़ों सैनिक भारत माता की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।