हिंद स्वराष्ट्र अम्बिकापुर : 01 मई मजदूर दिवस को ‘बोरे बासी दिवस’ के रूप में मनाने वाली भूपेश सरकार जहाँ इसे छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जोड़कर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही है वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ का गरीब मजदूर वर्ग यह सोंचकर अपने आपको ठगा महसूस कर रहा है कि उन्हें मजदूर दिवस के महत्वपूर्ण दिन सरकार से आख़िर क्या मिला..”बोरे बासी”..??
मजदूर दिवस पर पूरे प्रदेश का मजदूर वर्ग सरकार से श्रमिकों के हित में किसी जनकल्याणकारी घोषणा के इंतजार में था परंतु सरकार ने इस दिन बोरे बासी खाने का अभियान चलाकर पूरे प्रदेश के मजदूर वर्ग को निराशा कर दिया..
बोरे बासी मतलब बासी चावल को पानी के साथ खाने की परंपरा केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन् भारत में चावल उत्पादक प्रत्येक राज्य की संस्कृति रही है, ऐसे में सरकार द्वारा इसे विटामिन से भरपूर छप्पन भोग की तरह प्रस्तुत कर मजदूरों को खाने के लिए प्रेरित करना गरीबों व मजदूरों की थाली का मजाक बनाने जैसा ही है.. वैसे भी मात्र एक दिन बोरे बासी खाकर दूसरों को प्रेरित करने वाले नेता, मंत्री व अधिकारी दूसरे दिन भी इसे दोहराऐंगे इसमें संदेह है..
मजदूर दिवस के दिन बोरे बासी खाने का फरमान छत्तीसगढ़ सरकार ने चाहे जो भी सोचकर जारी किया हो परंतु इस महत्वपूर्ण दिन में मजदूरों के अधिकार, मजदूरी दर, मनरेगा मजदूरी भुगतान, प्रदेश से मजदूरों के पलायन सहित श्रमिक हितों से जुड़े सारे जरूरी सवाल पीछे छूट गए..
मजदूर दिवस को एक महोत्सव के रूप में मनाने की कोशिश में सरकार तो कामयाब रही लेकिन मजदूरों के हाथ कुछ नहीं लगा.. डाइनिंग टेबल पर मिनरल वाटर के साथ सभी जिलों के प्रशासनिक अधिकारीयों ने सरकार के निर्देशों का पालन करते हुऐ मजदूरों के दैनिक भोग ‘बोरे बासी’ का आनंद लिया और कार्यक्रम को सफल घोषित किया परंतु सरकार यह भूल गई कि मजदूरों के जीवन में असल परिवर्तन बोरे बासी खाने से नहीं बल्कि मजदूरों को डाइनिंग टेबल पर बैठकर मटर पनीर खाने लायक बनाने से होगा..
बहरहाल.. मजदूरों का भोजन तो अधिकारियों ने चाव से कर लिया परंतु अधिकारियों का भोजन मजदूर कब करेंगे इस सवाल का जवाब भी काश किसी के पास होता..??