अम्बिकापुर : कलेक्टर सरगुजा के आंखों में धूल झोंक उप संचालक पशु विभाग ने पशु तस्करों को बनाया पशु व्यापारी…..

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हिंद स्वराष्ट्र प्रशान्त पाण्डेय अम्बिकापुर : संभाग में पशु विभाग की गड़बड़ी का एक मामला आया है जिसमे पशु विभाग की बड़ी चोरी पकड़ी गई है। मामला पशु व्यापार की आड़ में पशु तस्करी से जुड़ा हुआ है। पशु विभाग अम्बिकापुर ने इस अंदाज में कुछ पशु तस्करों को पशु व्यापारियों का लाइसेंस बाटा है कि उसका कोई हिसाब पशु विभाग के पास भी नही है। बेहिसाब तरीके से लाइसेंस बाटने के चक्कर में पशु विभाग इतना उतावला हो गया था की उसने किसी बात की जांच की आवश्यकता भी महसूस नहीं की।
दरअसल प्रशान्त पाण्डेय द्वारा आरटीआई के माध्यम से कलेक्टर सरगुजा कार्यालय से रजिस्टर्ड पशु व्यापारियों की सूची मांगी, जवाब में पशु विभाग ने जानकारी के 9 पन्नो के होने की बात कहते हुए 18 रुपए के चालान पेश करने की बात कही। शुल्क जमा की गई तो पशु विभाग द्वारा 9 पन्नो की जानकारी प्रदान की गई। विभाग द्वारा दिए गए नौ पशु व्यापारियों की सूची में दो पशु व्यापारी रैयुफ कुरैशी और सलीम कुरैशी ऐसे थे जिनको समान वाहन क्रमांक सीजी15 एसी 5545 और सीजी 15 एसी 5546 की दो गाड़ियों का लाइसेंस दे दिया गया और ताज्जुब की बात यह थी की जिन गाड़ी नंबरों का लाइसेंस पशु विभाग सरगुजा द्वारा रैयुफ कुरैशी और सलीम कुरैशी को दी गई थी वह गाड़ी सीजी 15 एसी 5545 इकबाल कुरैशी के नाम पर रजिस्टर्ड हैं और इकबाल कुरैशी का नाम पशु व्यापारी के रूप में सूरजपुर में पहले से ही दर्ज है ऐसे में सवाल यह उठता है कि तीन अलग-अलग लोगों को एक ही गाड़ी का लाइसेंस दे देना कहीं ना कहीं किसी बड़े साजिश को दर्शाता है। मामले में ट्विस्ट तब आता है जब हिंद स्वराष्ट्र द्वारा इस घोटाले की जानकारी कलेक्टर सरगुजा तक पहुंचाई जाती है तब कलेक्टर सरगुजा द्वारा तत्काल इन दोनों व्यापारियों पर 420 का केस दर्ज कराने का आदेश दे दिया जाता है और जाली दस्तखत से फर्जी दस्तावेज बनाए जाने की खबर प्रकाशित करवा दी जाती है ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब दस्तखत जाली है तो सिर्फ और सिर्फ इन दोनों पशु व्यापारियों का ही लाइसेंस क्यों निरस्त किया गया बाकी के साथ पशु व्यापारियों के लाइसेंस में भी सेम दस्तखत हैं तो उनका लाइसेंस निरस्त क्यों नहीं किया गया?

अब ऐसे में सवाल उठता है की जब 2 लोगों के लाइसेंस फर्जी थे और उसमे कलेक्टर के हस्ताक्षर भी फर्जी थे वो कागजात पशुविभाग के ऑफिस में कैसे जमा हुए??और आरटीआई के माध्यम से जब इस विषय में जानकारी मांगी गई तो फिर उन फर्जी दस्तावेजों को पशु विभाग ने सत्यापित करके अपने उपसंचालक नरेंद्र सिंह से हस्ताक्षर करा कर उपलब्ध कैसे कराई? यह सोचने का विषय नही है बस समझने का विषय है की इसमें किसी बड़ी मिलीभगत की गई है और इसमें बड़े लेनदेन की भी संभावना है!!

अगर लाइसेंस फर्जी थे तो पशु विभाग ने आरटीआई के माध्यम से सत्यापित करके कैसे दिया

इस पूरे मामले में एक सवाल है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है की अगर सलीम कुरैशी और रैयूफ कुरैशी के लाइसेंस फर्जी थे और वो दोनो इस लाइसेंस का बार बार फर्जी तरीके से उपयोग कर रहे थे तो फिर उन दस्तावेजों को पशु विभाग में जमा कैसे कराया गया? फर्जी दस्तावेज पशु विभाग में जमा हुए कैसे यह सोचने का विषय है। यदि लाइसेंस फर्जी थे तो पशु विभाग को आरटीआई में उन दस्तावेजों को सत्यापित प्रतिलिपि के माध्यम से देना ही नही चाहिए था और यदि पशु विभाग ने उन दस्तावेजों को आरटीआई में सत्यापित करके दिया है तो वह दस्तावेज फर्जी कैसे हुआ?

पोल खुली तो पशु विभाग ने भेजा संशोधित लिस्ट

जब इस मामले में पशु विभाग की पोल खुली तो पशु विभाग के पैरों तले जमीन ही खिसक गई और आनन–फानन में पशु विभाग ने 2 लाइसेंस को फर्जी बताते हुए उन्हें हटाकर 7 पन्नो की जानकारी बिना मांगे आवेदक के पते में भेज दी। इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है की पशु विभाग में फर्जीवाड़ा कैसे चरम सीमा पर है क्योंकि अगर जानकारी गलत थी और 7 पन्नो की थी तो आवेदक से 14 रुपए लिए जाने थे ना की 18 रुपय पर पहले पशु विभाग ने 9 पन्नो की जानकारी बोलकर 18 रुपए मांगे बाद में जब पोल खुलने लगी तो 7 पन्नो की जानकारी बिना मांगे संशोधित सूची के नाम पर भेज दी।

जानकारी 7 पन्नो की थी तो 9 पन्नो की बताकर 18 रुपए क्यों लिए,क्या खुदको नही थी जानकारी या गलती से भेज दी जानकारी।

जब जानकारी 7 पेज की थी तो फिर आरटीआई के जवाब में 9 पेज बताकर 18 रुपए क्यों मांगे गए,क्या पशु विभाग को यह अंदाजा नहीं था की उनके इस लाइसेंस की जानकारी कोई आरटीआई के माध्यम से मांग सकता है या पशु विभाग को यह लगा ही नहीं था की कभी उनके इस फर्जीवाड़े का कभी उजागर भी होगा।

बिना मांगे क्यों दी संशोधित जानकारी

जब पहले ही 9 पन्नो की जानकारी दी जा चुकी है तो फिर संशोधित 7 पन्नो की जानकारी पशु विभाग ने क्यों दी यह सोचने का विषय है और इस बात की जानकारी तो पशु विभाग ही दे सकता है लेकिन पशु विभाग के उपसंचालक नरेंद्र सिंह हमेशा टाल मटोल करते रहे और उन्होंने इस मामले में अपना स्पष्टीकरण नही दिया।

क्या पशु विभाग के संरक्षण में हो रहा है पशु तस्करी

अब पशु विभाग के इस घोटाले को देखते हुए यह कहना गलत नही होगा की पशु विभाग के संरक्षण से गौ तस्करों को बल मिल रहा है और पशु विभाग की सहायता से पशु तस्कर पशु व्यापारी बनकर अपना काम और आसानी से कर रहे हैं। आपको बता दें कि कुछ महीने पूर्व प्रतापपुर के गौ रक्षकों द्वारा एक गाड़ी पकड़ी गई थी जिसने 20 से 25 नग पशु थे और जब गौ रक्षकों द्वारा गाड़ी को पुलिस को सौंपा गया था तो रैयूफ कुरैशी द्वारा अपने इसी लाइसेंस का इस्तेमाल करते हुए पशुओं और गाड़ी को छुड़ाया गया था। न जाने ऐसे ही कितने पशुओं की तस्करी इस फर्जी पशु व्यापारियों द्वारा की गई होंगी। अगर हिंद स्वराष्ट्र इस मामले में दखल नहीं देता तो पशु तस्करी का यह खेल पता नही कब तक चलता रहता।
अब देखना है की पशु विभाग इस मामले में अपने विभाग में क्या लीपापोती की कार्यवाही करके अपना पल्ला झाड़ता है या अपने बड़े कारनामों के चलते इस बात से उनके कान में जूं तक नहीं रेंगेगा।

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