अब तो पुलिस चाहे लुट पाट करें या अपराध और अपराधियों को जन्म देकर गरीबो को लुटवायें,चोरी करायें या मन्दिर की ही दान-पेटी चोरी करवाये,कर्तव्य विमुखता के सबूत भी हों पर नही होगी कार्यवाही…

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सेवानिवृत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी श्री जनकलाल गुप्त

खेद के साँथ लिखना पड रहा है कि--एक समय था,जब जिला पैदल पुलिस गरीबों,कमज़रों की संवैधानिक मौलिक अधिकारोंं की सुरक्षा के लिये समर्पित रहे? कमजोरो का सहयता करते अब नही? अब सँम्भवतः केवल-व-केवल पैसे वालों,बाहुबलीयों असमाजिको के लिये मात्र सिमीत हो गई हैं। वह समय भी रहा,जब-चाहे किसी भी पद के,पुलिस अधिकारी/कर्मचारी हो चाहे किसी प्रकार कि-छोटी से छोटी गल्ती, को जाने-अनजाने मे करने पर,तत्काल अनुशासनात्मक उचित कार्यवाई,चाहे एक ही-पद सिनीयर क्यों न-हो उनके वरिष्ठ अनुशासनात्मक अँकुषित करते थे।बडी गल्ती पर आवश्यक रुप से निष्पक्षता पुर्वक विभागीय जाँच कर उचित दण्डों से दण्डित किया जाता था।अब तो पुलिस चाहे लुट पाट करें या अपराध और अपराधियों को जन्म देकर गरीबो को लुटवायें,चोरी करायें,या मन्दिर का ही दान-पेटी चोरी करवाये। कमजोरों के रिपोर्ट अपराधी को बचाने के लिये नही लिखे कुछ भी करें,अँकुशण वरिष्ट अधिकारियों के पद्दीये कर्तव्य से हटा दिया जाना प्रतीत होता है। पहले किसी भी प्रकार के विपरीत टीप किसी के बिरुद्ध सार्वजनिक छपने के तत्काल कटिँग के साँथ पुलिस अधिकारी के विरुद्ध जाँच व दण्डात्मक कार्यवाई करते थे।अब शिकायत जाँच मे प्रमाणित अभिलेखें जाँच अधिकारी को,कर्तव्य बिमुखता जैसे के-अतिरिक्त लुट करने,जैसे कृत्य बाबत जाँच अधिकारी को देने के बाद भी,तीजोरी भर देने के बाद,उपनि०ओमप्रकाश यादव को आज तक निरँकुश रखा गया है।कई शिकायतें राज्य से,केन्द्र तक भेजा-सभी जाँच के आड ले अप्रणीत का कुटरचित/गलत रिपोर्ट तैयार कर्ता के तिजोरी भरने के बाद,भेज कर बचाया गया है।आप सोंच सकते हैं कि- प्रभारी उपनि०ओमप्रकाश यादव द्वारा जब मँदिर की सम्पति तक गायब कर करा लेने के बाद भी आज तक निरँकुश रखा गया है।ये अँबिकापुर के पुसिंग कानून व्यवस्था है? कमजोर असहाय का आगे क्या होगा?——–उक्त प्रकार के अतिरिक्त सँबँधित भ्रष्ट व दोषियो के सँवैधानिक नियुक्ति अधिकारी को धारा 197जा.फौ.की अनुमति भी नही देते ताकि न्याय हेतु,सिधे न्यायालय का शरण ले सकुँ? ये हैं सरगुजा के पुलिस यही है येही आम जनता को शान्ति शुरक्षा दकर अपराध और अपराधियों का पता कर पकड कर न्यायालय से अपराधियों को सजा दिलाना।

यह लेखनी री. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जनक लाल गुप्त जी की है जो मंदिर की सुरक्षा को लेकर लड़ रहे हैं परंतु उन्हें केवल दबाया जा रहा है,इस लेखनी के माध्यम से वो अपनी वेदना प्रकट कर रहे हैं, उनकी इस कानूनी लड़ाई में सभी को आगे आने की जरूरत है और कानूनी तौर पर दोषियों पर कार्यवाही करवाने की भी जरूरत है।

सही गलत सभी मौके में अपने कर्मचारियों का साथ देने वाली पुलिस विभाग आज अपने सेवानिवृत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ जो दुर्व्यवहार कर रही है उसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता। इस कृत्य ने पुलिस विभाग के दोहरे चरित्र को दुनियां के सामने लाके रख दिया हैंप्रशान्त पाण्डेय

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