सेवानिवृत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी श्री जनकलाल गुप्त
मैं सन् 1969 मे पुलिस की सेवा ग्रहण किया उस वक्त के अनुशासन और वरिष्ट अधिकारीयों द्वारा अधिनस्थों को अनुशासित रखने नियम,कानून पालन कराने की निष्ठावानित ईमानदारी अधिनस्थों को पुलिस परिवार को,अपने परिवार के रूप देखने न्याय देने के तरीकों से-ही आम जनता के बीच साख-विश्वास व मर्यादा,सम्मान सहयोग रहा है।लोग पुलिस के वर्दीवालों को अपने दरवाजे पर आदर पुर्वक जबरन बैठाकर मेहमान के रुप सेवा भाव करने का सौभाग्य मानते थे। इसीकरण पुलिस के हर जाँच अन्वेषण में आम लोगों का भींण सहयोग करने स्वतः तत्पर होते थे।जिस कारण अपराधियों को भय था।आज कोई भी देख तौल अनुभव कर सकता है।कि कितना विपरीत हो गया, कि-कितनी सँस्कारित,मानव अधिकारीत अधिकारी वर्तमान में पुलिस मे हैं।कि जो अपने ही पद्दीय समकक्षीय अधिकारी के पुर्वजों द्वारा आम जन हितार्थ निर्मित धार्मिक उपासना स्थल के पुजारी को चौकी लेजकर खुद मँदिर का चाभी लुटकर निकाले गये पुजारी को चौकी प्रभारी उपनिरीक्षक बैठाने का पावर किस कानुन में मिल गया है?
ईसी उपनि०के प्रभार अवधि मे ही मँदिर का दान पेटी दो बार तोड कर चोरी क्यों हुआ ?
ईसके पहले क्यों नही हुआ,रिपोर्ट क्यों नही लिखा गया?
रिपोर्ट करने पर उपनिरीक्षक ओमप्रकाश यादव अपने ही पद्दीये समकक्षीये पेन्शनर को बहुत कुच्छ कर देने का धमकी किस अधिकार से दिया?
सार्वजनिक उपासना स्थल की उपेक्षा,अपमान आदि की बैध रिपोर्ट लेख नही करनेआदि सम्बन्धीअनेकों शिकायत के बाद भी कानुनी कार्रवाई बिभागीय रुप से क्यों नही किया गया।शिकायत के अलावे भी सुपरवीजन व अनुशासित अधिकारी क्या देखते हैं।क्या येही जिला पद बल पुलिस कर्तव्य अफराध और अपराधीयों को जन्म देकर न्यायालिन बैध्य दण्डों पुलिस को बचाना कानुन मे अधिकार हो गया सिधे न्यायालय जाने के लिये धारा197जा०फौ०अनुमति सम्बन्धीत अधिकारी क्यों नही देते? क्या आम जनों का सँबैधानिक मौलिक आधिकार बिलोपित (सँशोधित)कर हटा दिया गया है?बिचरणीय तथ्य है।
यह पूरी लेखनी मंदिर की सुरक्षा की मांग करने वाले सेवानिवृत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जनकलाल गुप्त की है। इस लेखनी में उन्होंने अपनी वेदना प्रकट की है