आचार्य डॉ अजय दीक्षित
पत्रकारिता दिवस भी “हर दिवस”की तरह मना कर पत्रकार भी अपने कर्तव्यों समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री समझ लेंगे। वैसे आज का दिन पत्रकारों के लिए आत्ममंथन एवं आत्म चिंतन का होना चाहिए।
पत्रकारों को वर्तमान में दुरुह हो रही पत्रकारिता एवं उसकी दुर्पयोगिता का लेखा जोखा तैयार करना चाहिए ताकि इसका आकलन हो सके की वह समाज के प्रति अपनी लेखनी की कितना सही धार उसके उत्थान के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पूर्व में पत्रकारिता एक मिशन थी और इसके लिए अवश्यक थी बेहतर शिक्षा, कुछ कर गुजरने की प्रवृत्ति,समाज में घटने वाली हर छोटी बड़ी खबरों पर पैनी नजर और उसे अपने शब्दों में साहित्यिक ढंग से उतारकर समाज में सही ढंग से समाचार पत्र के माध्यम से परोसने की सही क्षमता।
लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता की परिभाषा एवं पत्रकारों की सोच बदल गई है। अब पत्रकारिता मिशन नहीं रह गई है। बल्कि पूर्ण व्यवसायिक हो गई है। समाचार पत्र के प्रबंध तंत्र पूरी तरह से व्यापारी बन गए हैं और वे अपने इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए पत्रकारिता को चाटुकारिता में बदल दिया है। पत्रकारिता के आड़ में कई तरह के व्यवसाय से भी जुड़ गए हैं। इसमें दो राय नहीं है की वर्तमान का युग अर्थ का है और पत्रकार भी समाज से जुड़ा रहता है उसका भी परिवार होता है और उसका पालन पोषण अर्थ के बिना बिना संभव नहीं है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि पत्रकार चाटुकार बन जाए और मिशन को ही भूल जाए।
वर्तमान में अखबार हो या बड़े टीवी चैनल किसी ना किसी बड़े घराने से जुड़े हैं और यह घराने किसी ना किसी राजनीतिक दल को विलांग करते हैं और पत्रकारों को दिशा निर्देश उनकी लेखनी पर रोक लगाने के लिए गाइडलाइन तक Pack कर देते हैं और ऐसी स्थिति में पत्रकारों को दिशा निर्देश के अनुरूप कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है पूर्व में पत्रकारों के लिए भारत बेहतर शिक्षा, लिखने की क्षमता का होना जरूरी था प्रिंट मीडिया में ऐसे पत्रकार नहीं मिलते थे जिनकी शिक्षा ना के बराबर हो और जिनकी लेखनी में धार ना हो यही कारण था कि लेखनी से सत्ता तक बदल जाती थी समाज में नवचेतना का संचार होता था और लोगों को जुल्म ज्यादती से मुक्ति मिल जाती थी क्योंकि पत्रकारिता एक मिशन थी और पत्रकार इस मिशन को पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता था इस एवज में जो पारिश्रमिक उसे मिलता था इसी से ही अपने पारिवारिक दायित्यों का निर्वहन करता था।
जब से चैनलों का प्रवेश हुआ पत्रकारिता एवं पत्रकारों की परिभाषा ही बदल गई अब पत्रकारों की शैक्षिक योग्यता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा वर्तमान में पत्रकारों के लिए शैक्षिक योग्यता कोई मायने नहीं रखती शैक्षिक योग्यता अनुभव एवं जुनून की जगह महंगे मोबाइल मोटरसाइकिल ने ले लिया है मिलने वाली पारिश्रमिक की जगह ऐसे पत्रकारों से प्रबंध तंत्र ने विज्ञापन के नाम पर धन ऐंठना शुरू कर दिया और इसकी शुरुआत आई कार्ड देने के नाम से ही शुरू हो जाती है यही एक कारण है कि वर्तमान में पत्रकारों की ऐसी नस्ल तैयार हो गई जिस को पत्रकारिता का मिशन ही नहीं मालूम शिक्षा का अभाव होने के कारण प्रेस कॉन्फ्रेंस में उलूल जलूल प्रश्न पूछे जाने लगे और दबाव बनाकर कुछ हासिल करने की प्रवृत्ति में इजाफा होने लगा और यह प्रवृत्ति वर्तमान में राजनीतिक दलों व्यवसायिक घरानों एवं अधिकारियों को उनके कर्तव्यों से मुंह मोड़ने के लिए विवश करने लगी जिसका दुष्प्रभाव समाज पर पढ़ना लाजिमी है।
वर्तमान में हाथरस का मामला कानपुर में कोरोनावायरस के दौरान गैस सिलेंडर ऑक्सीजन का ब्लैक करना तथा मेरठ में शराब बेचने के मामले समेत कई ऐसी घटनाएं सामने आई है जो पत्रकार एवं पत्रकारिता के इतिहास पर कालिख पोतने के लिए काफी है।समाचार पहले दिखाने की होड़ में हम उसका सही आकलन करना ही भूल गए हैं और जो दिखाया गया उसे ही दिखा देते हैं लेकिन जब तक कोई मामला काफी उछलता है तब तक हम अर्थी बन जाते हैं ।
वर्तमान में सरकार की नीति भी ऐसे पत्रकार एवं पत्रकारों को बढ़ावा देने का काम करती है आज पत्रकारिता दिवस पर कम से कम पत्रकार सोचे की वह किधर जा रहे हैं उसका मंथन करें हमारे बीच आए ऐसे पत्रकारों की नस्ल को बाहर करें जिससे पत्रकारिता कलंकित हो रही हो। शायद ऐसा हुआ तो पत्रकारिता दिवस मनाने का उद्देश्य कुछ तो सफल होगा। पुराने लकीरों को घिसने से कोई फायदा नहीं होगा। इसी लिए कहा गया है जब जागो तभी सवेरा I पत्रकारिता दिवस पर विशेष,सोचे हम किधर जा रहे हैं…