हिंद स्वराष्ट्र अम्बिकापुर प्रशान्त पाण्डेय : सरगुजा जिले के मणिपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत निवासी एक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी की व्यथा सुने तो आप भी परेशान हो जायेंगे क्योंकि मामला एक व्यक्ति की आस्था और उसके अधिकारों से जुड़ा हुआ हैं। आज एक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी को अपने अधिकार के लिए दर – दर भटकना पड़ रहा है।
दरअसल मामला मणिपुर थाना क्षेत्र में त्रिकोण चौक में स्थित मंदिर का हैं जिसका निर्माण कई वर्षों पूर्व जनक लाल गुप्त जी की माता के द्वारा जन कल्याण के लिए कराया गया था। इस मंदिर को लेकर सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी पुलिस व प्रशासन दोनों की दोहरी मार झेलने को मजबूर हो गए हैं। उनकी सहायता न तो पुलिस कर रही हैं और ना ही प्रशासन। गुप्त जी के इस मंदिर में जहां पहले कभी चोरी की घटना नहीं हुई लेकिन सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने आरोप लगाया है कि मणिपुर चौकी तत्कालीन प्रभारी ओम प्रकाश यादव के कार्यकाल में तीन बार उनके मंदिर में चोरी हुई और उसकी शिकायत भी उन्होंने थाने में जाकर की लेकिन इसके बावजूद चौकी प्रभारी द्वारा शिकायत दर्ज नहीं की गई बल्कि उनके साथ बदतमीजी की दुर्व्यवहार किया और धमकी भी दी इसके अलावा चौकी प्रभारी द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए मंदिर की चाबीयां भी लूट ली गई जिनको आज तक वापस नहीं किया गया है। ओम प्रकाश यादव द्वारा मंदिर में रखें अनेक सामानों को भी अपने कब्जे में रख लिया गया जिनको आज तक मंदिर के संरक्षक को नहीं दिया गया है। दूसरी ओर इस मंदिर के रख रखाव व जन कल्याण को देखते हुए मंदिर के लिए ट्रस्ट की स्थापना की कार्यवाही जनक लाल गुप्त के द्वारा करने हेतु एसडीएम कार्यालय में आवेदन दिया गया। जिस मामले में पुलिस और प्रशासन द्वारा लगातार परेशान किया जा रहा हैं। आपको यह बता दें कि मंदिर की जमीन सरकारी हैं और सरकारी जमीन पर बने इस मंदिर पर कुछ असामाजिक तत्वों की नजर है वह चाहते हैं कि किसी तरह इस मंदिर पर उनका कब्जा हो जाए और इस जमीन को बेचकर वे मालामाल हो जाए। चुकी मंदिर एक आस्था स्थल है इसीलिए मंदिर की देखरेख वह पूजा अर्चना संबंधित सभी चीजें सही से हो सके जिसके लिए एक ट्रस्ट के निर्माण का निर्णय लिया गया और ट्रस्ट निर्माण के लिए आवेदन एसडीएम कार्यालय में दिया गया। जब आरआई को मौका जांच के लिए भेजा गया तो कुछ असमाजिक तत्वों के द्वारा उनको वहां से डांट कर भगा दिया गया, जिसके बाद 6 माह तक कोई अधिकारी मौका जांच के लिए नही आया। जिसके बाद एसडीएम द्वारा आवेदन को निरस्त कर दिया गया। जे. एल. गुप्त ने आरोप लगाया है की एसडीएम के द्वारा स्वयं असामाजिक तत्वों से आपत्ति पत्र मंगवाकर लिया गया और उसके बाद ट्रस्ट निर्माण के आवेदन को निरस्त कर दिया था। ट्रस्ट पंजीयन की प्रक्रिया को जल्द कराने को लेकर गुप्त कई जन प्रतिनिधियों से भी मिले और उनके आग्रह किया की वो मंदिर के ट्रस्ट पंजीयन के लिए अधिकारियों से बात करें क्योंकि यदि मंदिर का रख रखाव नही हुआ तो भू माफिया उस जमीन को अपने नाम कर के बेच देंगे जिससे मंदिर का अपमान होगा परंतु कहीं से भी संतुष्टिजनक कार्यवाही नही हुई नतीजा रहा की एसडीएम प्रदीप साहू द्वारा ट्रस्ट पंजीयन को हो खारिज कर दिया गया। जब इस पूरे केस का नकल जे एल गुप्त द्वारा निकलवाया गया तो उसमे भी उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और इसमें से कई अभिलेख भी गायब कर दिए गए। जब ट्रस्ट पंजीयन रद्द कर दिया गया और उसके नकल में कई अभिलेख गायब मिले तब पीड़ित ने इस मामले को सिविल कोर्ट में याचिका दायर की जहां नोटिस मिलने के बाद भी कलेक्टर,एसडीएम और तो और शासन की ओर से एक वकील तक उपस्थित नही हुआ।
मंदिर से हुई दान पेटी चोरी
जब मंदिर से दान पेटी की चोरी हुई तो जे.एल.गुप्त रिपोर्ट दर्ज करवाने गए जहां एसआई ओमप्रकाश यादव चौकी प्रभारी मणिपुर द्वारा उनके साथ काफी दुर्व्यवहार किया गया और धमकी देते हुए बोला गया की चाहुं तो मैं कुछ भी कर सकता हूं तुम्हारे खिलाफ।
पहले जो पुलिसिंग थी और पुलिस के जो कर्तव्य थे उसका 1 प्रतिशत भी ओमप्रकाश नही रहा
एक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी का यह कहना की उनके बच्चे के समान एसआई ओमप्रकाश यादव द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया है। यह पुलिस विभाग के छवि को धूमिल करता है क्योंकि एक एसआई को अपने वर्दी का इतना रुतबा और गर्मी है यह इसी बात से समझ आ रहा है की वह अपने रिटायर्ड सीनियर अधिकारी से जिस प्रकार से बात कर रहा बेहद शर्मनाक है ऐसे अधिकारी अगर अपने विभाग के अधिकारी को नही पहचान रहे हैं तो आम जनता के साथ क्या सुलूक करते होंगे? यह पूछने की जरूरत नहीं है। इनका बस चले तो आम जनता को देखते ही गोली मार दें ऐसा इनकी हरकतों से प्रतीत होता हैं।
लूट खशोट और तिजोरी भरने में इनका रोल रहा
जे. एल . गुप्त ने आरोप लगाया है की एसआई ओमप्रकाश यादव का योगदान असामाजिक तत्वों, अपराध और अपराधियों को जन्म देना और उनको बल देना और उनको बढ़ावा देना, लूट खशोट करना और तिजोरी भरने में रहा हैं।
मंदिर की छीनी चाभी
एसआई ओमप्रकाश यादव ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए मंदिर की चाभी छीन ली और मंदिर में ताला भी लगा दिया हैं जबकि ओमप्रकाश यादव को यह अधिकार ही नहीं है की मंदिर की चाभी अपने पास रख सके लेकिन कहते हैं ना की जिसकी लाठी उसकी भैंस ओमप्रकाश एक पुलिस अधिकारी है तो अपने पद का धौंस तो दिखाएंगे ही। मणिपुर चौकी से चले जाने के बाद भी आजतक मंदिर की चाभियां जे एल गुप्त जी को नही दिया गया है जिनको ओम प्रकाश यादव द्वारा अपने पास ही रख लिया गया हैं।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक से भी की शिकायत पर नही हुई कोई भी कार्यवाही
जब सारे जगह से परेशान होकर सेवानिवृत पुलिस अधिकारी एएसपी के पास मदद की गुहार लगाता है और एसआई ओम प्रकाश यादव की कर्तव्य विमुखता से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करता है फिर भी एएसपी द्वारा अपने एसआई को बचाने के लिए गोल मोल जवाब देकर कार्यवाही में विलम्ब किया गया और अंतः अबतक कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
केवल मंदिर का रखरखाव व पूजा अर्चना मेरे मरने के बाद भी होती रहे यही कामना है – जे एल गुप्त
गुप्त जी का कहना हैं कि मंदिर का निर्माण मातोश्री ने काफी वर्षों पहले जन कल्याण के उद्देश्य से कराया था और मैं यही चाहता हूं की मेरे मरने के बाद भी मंदिर का रख रखाव पूजा अर्चना सुदृढ़ रूप से होता रहे यही मेरी इच्छा है और इसी उद्देश्य से मैं ट्रस्ट पंजीयन कराना चाहता हूं,ताकि मंदिर की उपेक्षा ना हो और किसी की भावना को ठेस न पहुंचे।