देश में क्यों न बढ़े भ्रष्टाचार….

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हिंद स्वराष्ट्र संपादक की कलम से…..पूरे देश में एक शब्द जिसने कोहराम मचा रखा है वह हैं भ्रष्टाचार। रहने को तो एक छोटा सा शब्द है जिसने कई लोगों की जिंदगियां, खुशियां छीन ली हैं। लेकिन आखिर क्या ऐसा कारण है कि ईमानदारी की कसमें खाने वाला एक समय ऐसा होता है की सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी बन जाता है। भ्रष्टाचार आखिर यह भ्रष्टाचार है क्या? क्या यह मजबूरी का पर्यायवाची नहीं??

हर इंसान के लिए भ्रष्टाचार के अलग अलग अर्थ हैं आज छोटे से छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े से बड़ा अधिकारी भ्रष्टाचार में संलिप्त नजर आता है। आज हम बात करते हैं छोटे कर्मचारियों की।।। किसी भी समस्या का समाधान ढूंढने से पहले जरूरी है कि समस्या का कारण ढूंढना आखिर इस समस्या का कारण क्या है आखिरकार ऐसी क्या वजह आन पड़ी जो किसी कर्मचारी को भ्रष्टाचार के दलदल में घुसना पड़ा!!

जब कोई इंसान पहली बार कोई अपराध करता है तो उसके पीछे उसकी कोई ना कोई मजबूरी होती है जो बाद में उसे अपराधी बना देती है और जब मजबूरी खत्म होती हैं तबतक वह पेशेवर अपराधी बन जाता हैं और उसे अपराध करने में मजा आने लगता है। कुछ दिनों पहले एक पूर्व कर्मचारी से बातचीत हुई इस दौरान उन्होंने बताया कि उन्होंने हमेशा ईमानदारी से कार्य किया कभी किसी से घूस नहीं ली लेकिन एक दिन ऐसा मामला आता है जब उनके दरवाजे पर लिफाफा लेकर व्यक्ति खड़ा होता है और दूसरी ओर उनके पास अपने कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए पैसे नहीं होते हैं….फिर क्या मजबूरी ईमानदारी से जीत गई….

एक नगर निगम की प्लेसमेंट कर्मचारी की माता जी को हार्ट अटैक आ जाता है उन्हें शहर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराया जाता है जहां 9 दिन के उपचार का बिल 300000 आता है अब सोचने की बात यह है कि एक प्लेसमेंट कर्मचारी जिस की तनख्वाह मात्र ₹6000 है और जिसके परिवार में 7 सदस्य हैं वह इस बिल का भुगतान कैसे करेगा? जो व्यक्ति प्लेसमेंट कर्मचारी के रूप में पिछले 12 साल से कार्यरत है क्या वह ईमानदारी के साथ कार्य करके अपने भरण-पोषण करने और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में सफल हो पाएगा? क्या ऐसी छोटी-छोटी वजह किसी इंसान को भ्रष्टाचारी बनने को मजबूर नहीं करती?? क्या सरकार का अपने कर्मचारियों को भ्रष्ट बनाने में योगदान नहीं हैं??

चलिए ऐसा एक और मामला देखते हैं… कहा जाता है कि पुलिस वाले घूसखोर होते हैं बिना घूस लिए कोई काम नहीं करते लेकिन क्या उनकी सैलरी परिवार चलाने के लिए पर्याप्त है?? एक पुलिस अधिकारी से हुई चर्चा में उन्होंने अपने विभाग द्वारा पुलिसकर्मियों के साथ किए जाने वाले सौतेलेपन के बारे में बताया। उनका कहना था कि कहना था कि पुलिस विभाग में उनकी भी कई समस्याएं हैं जिनको सुनने वाला कोई नहीं हैं अगर पुलिसवाले 100 – 50 की लेनदेन नहीं करेंगे तो उनका घर परिवार कैसे चलेगा?? यहां भी भ्रष्टाचार का कारण सिर्फ उनकी अपर्याप्त वेतन ही हैं…

ये सारी बातें सोचने को मजबूर करती हैं आखिरकार इस भ्रष्टाचार का असली जिम्मेदार कौन हैं..??? भ्रष्टाचार को कैसे रोका जा सकता हैं..?? इसका समाधान काफी सरल हैं…जरूरत हैं तो बस सरकार को इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट करने की। सरकार का एक निर्णय समाज को बदल सकता हैं और यह एक समस्या कई अन्य समस्याओं का अंत करने को सक्षम हैं।

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